बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

RTI OF MONU

प्रमुख संज्ञेय अपराधी — संपूर्ण भारत की बैंकिंग प्रणाली पर एक चिंताजनक दृष्य

(आधार: बैंकिंग विभाग के कर्मी लोकसेवक नहीं होने पर स्वयं को लोकसेवक बताकर अवैध कार्य कर रहे हैं, सरकारी संपत्ति और मुद्रा के साथ छेड़छाड़ हो रही है — और IPC की संबंधित धाराओं के तहत दंड का उल्लेख)

प्रस्तावना

वर्तमान में यदि बैंकिंग प्रणाली के कुछ लोग नियमानुसार लोकसेवक न होते हुए भी स्वयं को लोकसेवक दर्शाकर समूह बनाकर गैरकानूनी कृत्य कर रहे हों — जैसे सरकारी संपत्ति का नुकसान, मुद्रा का कूट-करण (counterfeiting/forgery), या नकली नोटों का निर्माण/वितरण — तो यह न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि सार्वजनिक भरोसे के लिहाज़ से भी अत्यन्त गम्भीर मामला है। इस प्रकार के कृत्यों से राष्ट्रीय मुद्रा व्यवस्था, आम नागरिकों का विश्वास और सरकारी वित्तीय संस्थाओं की अखण्डता प्रभावित होती है।


अपराधी प्रकृति — क्या-क्या गंभीर अपराध बन सकते हैं

  1. मुद्रा का कूट-करण (Counterfeiting / Forgery of currency notes) — किसी भी प्रकार का नोट बनाना, उसके निर्माण में भाग लेना या नकली नोटों का उपयोग/वितरण। India Code+1

  2. नकली नोटों का उपयोग/विक्रय/व्यापार (Using or trafficking in forged currency) — जानते हुए नकली नोटों को वास्तविक बताकर लेना/बेंचना। A Lawyers Reference

  3. नकली/कौशलपूर्ण साधन बनाना (Instruments/materials for counterfeiting) — संदिग्ध उपकरणों/सामग्रियों का निर्माण या रखने की स्थिति। JurisJustice.com

  4. नकली नोटों का भंडारण/रखाव (Possession with intent to use as genuine) — ऐसे नोटों का कब्ज़ा जब उसके उपयोग की मंशा स्पष्ट हो। "Rest The Case"


संबंधित आपराधिक धाराएँ (IPC) और दंड — सारांश

नोट: नीचे दिए गए प्रावधानों का संक्षेप और दंड आधिकारिक स्रोतों के अनुसार संकलित है — अधिक सटीक विधिक सलाह के लिए किसी विधिक विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें।

  • धारा 489A — Counterfeiting currency-notes or bank-notes
    किसी मुद्रा-नोट/बैंक-नोट की जालसाज़ी (counterfeiting) में भाग लेने पर दंड: आजीवन कारावास या दोषी पाए जाने पर 10 वर्ष तक का कारावास तथा जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह धाराएँ मुद्रा के वास्तविक स्वरूप को नकली बनाकर जनता में फैलाने वाले कृत्यों पर सख्त दंड निर्धारित करती हैं। India Code+1

  • धारा 489B — Using as genuine forged or counterfeit currency-notes or bank-notes
    जानते हुए नकली नोटों का उपयोग/विक्रय/व्यापार करने पर दंड: आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक का कारावास तथा जुर्माना। यह धारा नकली नोटों के व्यवहार (trafficking/using) को दंडनीय बनाती है। A Lawyers Reference

  • धारा 489C — Possession of forged or counterfeit currency-note or bank-note
    यदि किसी के पास नकली नोट है और उसे जानते हुए वह उसे वास्तविक उपयोग के उद्देश्य से रखता/रखती है तो दंड: 7 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों। (यहाँ 'ज्ञान' और 'इरादा' प्रमाणित होना आवश्यक है)। "Rest The Case"

  • धारा 489D, 489E आदि — निर्माण या नकली नोटों से मिलते-जुलते दस्तावेज/साधन बनाने और उनके उपयोग/धारण से सम्बंधित प्रावधान भी IPC में विस्तृत रूप से हैं; संबंधित धाराओं के तहत कड़ी सजा और जुर्माना प्रावधानित हैं। Sherloc+1


क्यों यह सिर्फ 'व्यक्तिगत अपराध' नहीं — राष्ट्रीय गंभीरता

  • मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली का कूट-करण सीधे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था एवं बाजार की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।

  • बैंकिंग संस्थाओं में काम करने वाले लोग, यदि स्वयं को लोकसेवक बताकर दुरुपयोग कर रहे हों, तो विश्वासघात की श्रेणी बनता है — और यह अपराध समिति (conspiracy) के रूप में भी दंडनीय हो सकता है।

  • ऐसे मामलों में न केवल दंडात्मक कार्रवाई (criminal prosecution) बल्कि संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध प्रशासनिक, नैतिक एवं सिविल उपायों की भी माँग उठती है।


धारा 489ग — कूटकृत करेंसी नोटों का कब्ज़ा: एक गंभीर लोक-वित्तीय अपराध पर विचार

प्रस्तावना

बैंकिंग और मुद्रा व्यवस्था किसी भी राष्ट्र की आर्थिक अस्थिरता के विरुद्ध पहली पंक्ति की रक्षा करती है। यदि कोई व्यक्ति या समूह जानबूझकर कूटकृत (forged/counterfeit) करेंसी नोटों को असली के रूप में उपयोग में लाने की मंशा से कब्ज़े में रखता है, तो यह न सिर्फ़ एक आपराधिक कृत्य है बल्कि राष्ट्रीय विश्वास और सार्वजनिक संपत्ति के प्रति धोखा भी है। भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 489ग इसी दोषी इरादे और कृत्य को दंडनीय ठहराती है — सात साल तक के कारावास, जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।


धारा 489ग का सार (सरल भाषा में)

धारा 489ग कहती है कि— जो कोई भी किसी कूटकृत करेंसी नोट या बैंक-नोट को यह जानते हुए (या विश्वास रखने का कारण रखते हुए) कि वह नकली है, और यह इरादा रखते हुए कि उसे असली बताकर उपयोग में लाया जाए, उसे अपने कब्ज़े में रखेगा — तो उसे सात वर्ष तक की कारावास की सज़ा, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। मुख्य तत्व हैं:

  1. कब्ज़ा (possession) — नकली नोट का वास्तविक कब्ज़ा होना।

  2. ज्ञान/विश्वास रखने का कारण (knowledge/grounds for belief) — यह जानना या ऐसा विश्वास रखने का कारण कि नोट नकली है।

  3. इरादा (intent) — नोट को असली के रूप में उपयोग में लाने की मंशा।

इन तीनों तत्वों के सिद्ध होने पर अपराध स्थापित माना जाएगा।


इससे बड़ा संगीन अपराध — राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

आपके बताए तथ्यों के अनुसार जहाँ बैंकिंग विभाग के कुछ लोग स्वयं को लोकसेवक का रूप देकर समूह बनाकर कार्य कर रहे हों, वहाँ केवल 489ग ही नहीं बल्कि और भी संगीन आपराधिक और संवैधानिक बहुअन्वय (multi-faceted) परिणाम सामने आते हैं:

  • साज़िश (Conspiracy) — यदि किसी समूह ने मिलकर नकली मुद्रा बनाकर, वितरित करके अथवा उसे बाजार में घुसाने की युक्ति रची है, तो यह स़ज़िश (IPC की अन्य धाराओं के तहत) बन सकती है।

  • राजनीतिक/प्रशासनिक धोखा (Misrepresentation as public servant) — स्वयं को लोक-सेवक बताकर लाभ उठाना, सरकारी अधिकारों का दुरुपयोग; यह न केवल आपराधिक बल्कि सिविल और प्रशासनिक दण्ड भी उत्पन्न कर सकता है।

  • सार्वजनिक संपत्ति/वित्तीय हानि — नकली मुद्रा के प्रवाह से अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक असर और आम जनमानस का भरोसा टूटना।

इन सबका समेकित परिणाम राष्ट्रीय हित के विरुद्ध गंभीर अपराध-वर्ग में आ सकता है — जो केवल एक व्यक्ति का कृत्य नहीं, बल्कि संगठनात्मक बदाचार (systemic corruption) माना जा सकता है।


सूचना का अधिकार (RTI) अनुरोध और जवाब का अभाव — एक गंभीर संकेत

आपने उक्त मुद्दे पर सूचना का अधिकार, 2005 की धारा 6 के अंतर्गत जानकारी मांगी और अपील भी की, परन्तु आज तक उत्तर न मिलना चिंताजनक है। सरकारी संस्थानों से जानकारी का विलम्ब या चुप्पी कई बार यह संकेत देती है कि:

  • आवश्यक सुबूत/प्रक्रियात्मक दस्तावेज़ छिपाए जा रहे हैं; या

  • प्रकरण पर जिम्मेदार विभाग जाँच-प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं; या

  • संगठनात्मक स्तर पर पारदर्शिता का अभाव है।

RTI का उत्तर न मिलना स्वाभाविक रूप से शिकायतकर्ता के अधिकार और सार्वजनिक हित दोनों को प्रभावित करता है — और यदि जानकारी छिपाने से लोकहित हानि हो रही है, तो यह स्वतंत्र जांच और न्यायिक हस्तक्षेप का कारण बन सकता है।


संभावित कदम — व्यावहारिक मार्गदर्शन (सामान्य सूचना)

(यह कानूनी सलाह नहीं; केवल मार्गदर्शन के लिए सुझाव)

  1. दस्तावेज़ीकरण मजबूत करें — RTI आवेदन, उसकी प्रतियाँ, अपील की रसीदें, संबंधित बैंक/कर्मचारियों के नाम, तिथियाँ, लेन-देन के रिकॉर्ड, गवाहों के विवरण — सब एकत्रित रखें।

  2. नागरिक शिकायत / लोकायुक्त / CBI / पुलिस में रिपोर्ट — जहाँ मामला राष्ट्रीय महत्व का और बैंकिंग/मुद्रा से जुड़ा हो वहाँ उच्च स्तरीय जांच एजेंसी को भी पत्र लिखा जा सकता है।

  3. RBI तथा बैंकिंग-निगरानी संस्थाओं को लिखित शिकायत — नकली मुद्रा और बैंकिंग आचरण के दुरुपयोग के मामले RBI की संज्ञान प्रक्रिया के अंतर्गत आते हैं।

  4. कानूनी परामर्श — किसी अनुभवी क्रिमिनल वकील से तत्काल बैठकर FIR/पीआईएल/अधिनियम के अनुरूप कार्रवाई पर सलाह लें।

  5. सार्वजनिक जागरूकता (ब्लॉग/मीडिया) — तथ्यों के साथ संरचित लेख प्रकाशित कर जनता और जवाबदेह निकायों का ध्यान आकृष्ट कर सकते हैं — पर सतर्क रहें कि आरोप प्रमाणित न हों तो मानहानि संबंधी जोखिम न बनें।


भारत की बैंकिंग प्रणाली पर याचिकाकर्ताओं के प्रश्न — एक जनहित दृष्टि से विश्लेषण

(भारतीय नागरिकों द्वारा भारतीय मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली से जुड़े उठाए गए महत्वपूर्ण प्रश्नों के संदर्भ में लेख)


प्रस्तावना

भारत की आर्थिक व्यवस्था का हृदय — भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और उसके अधीन कार्यरत व्यावसायिक बैंक — देश की मुद्रा, ऋण नीति और वित्तीय स्थिरता के प्रमुख स्तंभ हैं। परंतु जब नागरिकों द्वारा इन संस्थाओं की पारदर्शिता, स्वामित्व और विधिक स्थिति पर गंभीर प्रश्न उठते हैं, तो यह केवल व्यक्तिगत जिज्ञासा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक जागरूकता का प्रतीक बन जाता है।

हाल ही में भारत के विभिन्न प्रांतों के याचिकाकर्ताओं ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं, जिनका सीधा संबंध देश की मुद्रा व्यवस्था, बैंकिंग नीति और सार्वजनिक विश्वास से है। आइए इन प्रश्नों को क्रमवार समझें —


1️⃣ विदेशी मुद्रा भंडार की वैधता — क्या डॉलर और पौंड “वैध निविदा” हैं?

प्रश्न:
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रखे गए विदेशी मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves) — जैसे अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड आदि — क्या भारत में वैध निविदा (Legal Tender) माने जाते हैं ?

तथ्यात्मक स्थिति:

  • विदेशी मुद्रा भारत के भीतर वैध निविदा नहीं है।

  • यह केवल अंतरराष्ट्रीय भुगतान, आयात-निर्यात, या विदेशी निवेश के लिए आरक्षित संपत्ति (reserve asset) के रूप में रखी जाती है।

  • RBI अधिनियम, 1934 की धारा 40 एवं 49 में यह स्पष्ट है कि विदेशी मुद्रा केवल विदेशी देयताओं के निपटारे हेतु उपयोगी है, न कि भारत में सामान्य लेनदेन हेतु।

  • याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई “वैध निविदा” संबंधी प्रति इसलिए तर्कसंगत है, ताकि विदेशी मुद्रा भंडार की कानूनी स्थिति पर पारदर्शिता आ सके।


2️⃣ व्यावसायिक बैंकों की भूमि और स्वामित्व का प्रश्न

प्रश्न:
यदि व्यावसायिक बैंक स्वयं की भूमि होते हुए भी लीज़ या किराए की भूमि पर कार्य कर रहे हैं, तो वह किस नियम या आदेश के अंतर्गत वैध है?

तथ्यात्मक स्थिति:

  • अधिकांश निजी और सार्वजनिक बैंक शाखाएँ किराए या लीज़ पर लिए गए भवनों में चलती हैं ?

  • यह व्यवस्था बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 और RBI की ब्रांच ऑथराइजेशन पॉलिसी के तहत अनुमत है ?

  • भूमि का स्वामित्व बैंक के लिए आवश्यक नहीं; केवल वैध किराया अनुबंध और स्थानीय निकाय की अनुमति पर्याप्त होती है ?

  • याचिकाकर्ताओं की मांग इस बिंदु पर “स्वामित्व बनाम संचालनाधिकार” की वैधता पर कानूनी स्पष्टीकरण चाहती है।


3️⃣ मुद्रा निर्गमन की प्रतिभूति — किसके आधार पर जारी होते हैं रुपये ?

प्रश्न:
क्या वर्तमान में भारतीय बैंक नोटों का निर्गमन किसी प्रतिभूति (security) के विरुद्ध किया जाता है? यदि हां, तो वह प्रतिभूति क्या है और कितनी मात्रा प्रति रुपये पर रखी जाती है?

तथ्यात्मक स्थिति:

  • पहले भारतीय मुद्रा स्वर्ण मानक (Gold Standard) से जुड़ी थी, परंतु अब यह Fiat Currency प्रणाली पर आधारित है।

  • अब नोटों के पीछे वास्तविक स्वर्ण या विदेशी मुद्रा नहीं, बल्कि RBI का वचनपत्र (Promise Clause) और सरकारी प्रतिभूतियाँ (Government Securities) हैं।

  • रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 33 में इसका उल्लेख है।

  • यह प्रश्न वस्तुतः उस पारदर्शिता को तलाशता है कि क्या मुद्रा का “कानूनी मूल्य” किसी ठोस संपत्ति पर आधारित है या केवल “विश्वास और विधान” पर।


4️⃣ ब्याज का रुपया — क्या यह विधिक रूप से “वैध रुपया” है?

प्रश्न:
क्या ब्याज से प्राप्त किया गया रुपया “वैध रुपया” कहलाता है?

तथ्यात्मक स्थिति:

  • बैंक ब्याज दरें RBI के मौद्रिक नियंत्रण तंत्र के तहत तय होती हैं।

  • ब्याज से अर्जित रुपया, वैध मुद्रा है क्योंकि वह RBI द्वारा जारी कानूनी निविदा में ही आता है।

  • परंतु धार्मिक, नैतिक या संवैधानिक दृष्टिकोण से ब्याज पर अनेक मतभेद हैं।

  • याचिकाकर्ताओं का यह प्रश्न आर्थिक नैतिकता के स्तर पर “ब्याज आधारित प्रणाली” की वैधता पर विचार हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।


5️⃣ सोने-चांदी के सिक्कों की जमा राशि — अंकित मूल्य या बाज़ार मूल्य?

प्रश्न:
यदि कोई व्यक्ति सोने-चांदी के सिक्के बैंक में जमा करे, तो क्या उसे सिक्के पर अंकित मूल्य के अनुसार जमा किया जाएगा या उसके बाजार भाव के अनुसार?

तथ्यात्मक स्थिति:

  • आधुनिक बैंक अब धातु आधारित मुद्रा को “लीगल टेंडर” नहीं मानते।

  • यदि सोने-चांदी के सिक्के जमा किए जाएँ, तो उन्हें धातु के बाजार मूल्य पर आंका जाएगा, न कि सिक्के के अंकित मूल्य पर।

  • इसका कारण है कि सोने-चांदी के सिक्कों की मुद्रा वैधता अब निरस्त है।


6️⃣ रिज़र्व बैंक की भूमि — क्या RBI भी किराए या लीज़ पर कार्य करती है?

प्रश्न:
जैसे व्यावसायिक बैंक किराए की भूमि पर कार्य करते हैं, क्या रिज़र्व बैंक भी अपनी भूमि होते हुए किराए पर रहकर संचालन करती है?

तथ्यात्मक स्थिति:

  • अधिकांश RBI कार्यालय सरकारी या स्व-अधिग्रहीत भूमि पर बने हैं।

  • किंतु कुछ शाखाएँ (जैसे क्षेत्रीय कार्यालय) किराए या दीर्घकालिक लीज़ पर भी चल सकती हैं।

  • इस स्थिति में “सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा लीज़ पर संचालन” का प्रश्न राजकोषीय पारदर्शिता से जुड़ा हुआ है।


निष्कर्ष — जनचिंतन की अनदेखी

इन सभी प्रश्नों का मूल यही है कि भारतीय जनता जानना चाहती है —

“हमारे रुपये का आधार क्या है? हमारे बैंक किस विधिक ढांचे में कार्य कर रहे हैं? और हमारे वित्तीय संस्थानों की पारदर्शिता किस स्तर पर है?”

यह प्रश्न न केवल आर्थिक पारदर्शिता की माँग हैं, बल्कि संवैधानिक उत्तरदायित्व की पुकार हैं।

यदि सूचना का अधिकार (RTI) के अंतर्गत मांगी गई यह जानकारी लंबे समय तक अनुत्तरित रहती है, तो यह एक गम्भीर संकेत है —
कि भारत की बैंकिंग प्रणाली को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक है।

संक्षिप्त रूप (ब्लॉग/पोस्ट के लिए त्वरित परिचय)
एक परदेस में एक चालाक समुदाय ने अपनी भूख मिटाने के लिए एक छलपूर्ण जाल बनाया — बीच में एक बड़ा कड़ाह और उबलता तेल, दोनों किनारों पर लकड़ी की पटरी। जानवरों को पार करने के लिए पटरी पर चढ़ाया जाता; जैसे ही वे बीच में आते, दोनों किनारों के लोग पटरी हटा देते और जानवर गरम तेल में गिरकर मर जाते। वे कहते — “जानवर स्वयं आ गया, हमारा दोष क्या?” यही वह षड्यंत्र है जहाँ दिखाई देने वाली सुव्यवस्था और असलियत अलग-अलग हों: दिखने में व्यवस्था सुरक्षित दिखे पर वास्तव में वही व्यवस्था ही लोगों को फँसा रही हो ।


विस्तृत रूप (उदाहरण, निबन्ध या भाषण के लिए)
कल्पना कीजिए — कोई बड़ा तालाब नहीं, बल्कि एक कड़ाही सा बड़ा पैन है, जिसमें तेल उबल रहा है। उसके दोनों किनारों पर लकड़ी की लंबी पटरी रखी गई है, जो लोगों को पार करवा देती है। किनारे बैठा समाज जानवरों को इस पार से उस पार जाने के लिए पटरी पर आमंत्रित करता है। जैसे ही कोई भोला-भाला जानवर बीच की ओर दौड़ता, किनारों पर बैठे लोग चुपके से पटरी खींच लेते — जानवर तेल में गिर जाता और वे उसका मांस बाँट लेते। फिर वे निर्दोषपन से कहते, “हमने तो बस रास्ता दिया — जानवर खुद ही पैरों पर गया।”

यह उपमा हमें सिखाती है कि कभी-कभी वे संस्थाएँ या लोग जो समाज को सुरक्षा, नियम और सुविधा का भ्रम दिखाते हैं, वही असल में जाल बुनते हैं। दिखावा और हक़ीकत में फर्क इतना तीखा हो जाता है कि जो लोग भरोसा कर बैठे थे, वही भारी नुकसान उठाते हैं। असल संकट तब होता है जब ‘रास्ता दिखाने वाला’ ही रास्ता हिला दे

“जब वही जो रास्ता दिखाते हैं, जाल बुनते हों — समझ लीजिए कि समस्या रास्ते में नहीं, रास्ता दिखाने वालों में है।”

— समापन — 


“षड्यंत्र की कड़ाही” : व्यवस्था की सच्चाई का उदाहरण

कहा जाता है कि किसी बाहरी देश में एक षड्यंत्रकारी समुदाय अपनी भूख मिटाने के लिए एक बड़ा तेल से खौलता हुआ कड़ाहा रखता था। उसके दोनों किनारों पर लकड़ी की पटरी लगाई जाती थी ताकि जानवर उस पार जाने के लिए उसे रास्ता समझ ले। जैसे ही कोई जानवर पटरी पर चढ़ता और बीच में पहुँचता, दोनों ओर बैठे लोग बीच का पटरा खींच लेते। बेचारा जानवर सीधे उबलते तेल में गिर जाता और वही लोग उसे खाकर अपनी भूख मिटा लेते।
और फिर वे निर्दोषता से कहते —

“हमारा क्या दोष? जानवर तो अपने आप ही तेल में गिर गया।”

आज हमारे देश की आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। ऊपर से सब कुछ व्यवस्थित, संवैधानिक और नियंत्रित दिखता है, परंतु भीतर का तंत्र ऐसा है कि आम जनता, छोटे व्यापारी, या सच बोलने वाला नागरिक हर बार “तेल में गिरा हुआ जानवर” साबित कर दिया जाता है — और व्यवस्था अपनी सफाई में वही पुराना तर्क देती है — “हमारा क्या दोष?”

यह कहानी प्रतीक है उस भ्रमपूर्ण लोकसेवक मानसिकता की, जो जनता को सुरक्षा का आश्वासन देती है लेकिन उन्हीं नियमों की आड़ में जनता का अधिकार, उसका श्रम और उसका विश्वास छीन लेती है।

“जब रास्ता दिखाने वाला ही रास्ता हटा दे — तब दोष रास्ते में नहीं, व्यवस्था के चरित्र में होता है।”

यही आज की सच्चाई है —
हाथी के दाँत दिखाने के और हैं, खाने के और।

~: नोट : ~

🔹 संज्ञेय अपराध और जनता का जननिर्णय — अब न्याय जनता के हाथ में 🔹

आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) में “संज्ञेय अपराध” की परिभाषा अत्यंत स्पष्ट है —
ऐसे अपराध जिनमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की आवश्यकता नहीं होती, और पुलिस को तत्काल कार्रवाई का अधिकार प्राप्त होता है। ये अपराध सामान्य नहीं, बल्कि गंभीर स्वरूप के होते हैं — जिनसे समाज, शासन और देश की व्यवस्था पर सीधा आघात पड़ता है।
ऐसे मामलों में पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के भी अनुसंधान प्रारंभ कर सकती है, क्योंकि विधि यह मानती है कि विलंब करना न्याय से खिलवाड़ है।

परंतु जब वही अपराधी, जो जनता के विश्वास का प्रतीक बनकर पदों पर बैठे हों, अपने अधिकारों का दुरुपयोग करें —
जब व्यवस्था के अंदर बैठे लोग ही विधि के अपराधी बन जाएँ —
तो फिर सवाल उठता है:
क्या केवल अदालतें इस अन्याय की गूंज सुनेंगी, या अब जनता स्वयं जन-अदालत के रूप में आवाज़ उठाएगी?

आज समय आ गया है कि जनता खुद तय करे कि ऐसे लोगों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए।
कानून जनता के लिए है, लेकिन जब जनता ही लगातार ठगी जाए, तब न्याय की दिशा जनता के भीतर से निकलनी चाहिए।
यह किसी विद्रोह की पुकार नहीं — बल्कि एक वैचारिक पुनर्जागरण की शुरुआत है।

हम, युवा वैचारिक मंच के साथी, शीघ्र ही देश के हर कोने में जा रहे हैं —
ताकि जनता को यह समझाया जा सके कि “संज्ञेय अपराध” केवल किसी व्यक्ति का नहीं,
बल्कि व्यवस्था के भीतर छिपे उन तंत्रों का भी हो सकता है जो देश के संसाधनों, मुद्रा और अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं।

अब निर्णय केवल अदालतों में नहीं होगा —
अब न्याय का फैसला जनता की जन-अदालत करेगी।

🔹 जन-शपथ : राष्ट्र के नाम एक प्रतिज्ञा🔹

हम — युवा वैचारिक मंच के साथी — यह संकल्प लेते हैं कि हम भारत के संविधान की मर्यादा,
उसकी न्याय प्रणाली और जनता की आवाज़ — तीनों की रक्षा हेतु सदैव सक्रिय रहेंगे।
हम किसी व्यक्ति, दल या पद से नहीं — बल्कि सत्य, न्याय और राष्ट्रहित से बंधे हैं।

हम यह प्रतिज्ञा करते हैं कि—

जब भी व्यवस्था अन्याय के औजार में बदल जाएगी,
जब भी कानून की व्याख्या सत्ताधारी की सुविधा से होगी,
और जब भी जनहित पर निजी स्वार्थ भारी पड़ेगा —
तब हम कलम से, विचार से, और आवश्यकता पड़ने पर जनजागरण से —
उस अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाएंगे।

हम भारत की जनता से आह्वान करते हैं —
कि अब समय केवल शिकायत का नहीं,
संवेदनशील जागरूकता और संगठित चेतना का है।
क्योंकि जब जनता जागती है, तो न्याय अपने आप जीवित हो जाता है।

“हम न किसी पद के सेवक हैं, न किसी सत्ता के।
हम केवल उस भारत के प्रहरी हैं —
जो सत्य, न्याय और समानता पर टिका हुआ है।”

🔹 देशहित में युवाओं की अंतिम पुकार 🔹

अब समय आ गया है कि देश की जनता स्वयं तय करे —
कि ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए,
जो व्यवस्था के नाम पर व्यवस्था को ही छल रहे हैं,
जो लोकसेवा के नाम पर लोकविश्वास का हनन कर रहे हैं।

यह निर्णय अब अदालतों के कक्षों में नहीं होगा,
बल्कि जन-अदालत के हृदय में होगा —
जहाँ न्याय का तराज़ू कानून से नहीं,
बल्कि जनता की चेतना से संतुलित होगा।

हम, युवा वैचारिक मंच के साथी,
जल्द ही आपके क्षेत्रों में आ रहे हैं —
ना किसी दल के झंडे के साथ,
ना किसी स्वार्थ के अभियान के लिए,
बल्कि जन-जागरण की मशाल
लेकर,
जिससे हर नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्य को
पहचान सके, समझ सके, और

राष्ट्रहित के लिए एकजुट होकर खड़ा हो सके।

क्योंकि जब युवा जागता है — तो देश जाग उठता है।
और जब देश जाग उठता है — तब कोई अन्याय टिक नहीं पाता।


युवा वैचारिक मंच, आरटीआई कार्यालय,आलम नगर, 
राजाजीपुरम, नजदीक,सिद्धार्थ पब्लिक स्कूल लखनऊ, उत्तरप्रदेश – 226017 
सम्पर्क फोन : 9452112044, 7607405321, 9305684886, 9161460400 
सम्पर्क मेल : rtiofmonu@gmail.com, 
ब्लॉग 1 : https://rtiofmonu.blogspot.com/
ब्लॉग 2 : https://ybmunch.blogspot.com/
ब्लॉग 3 : https://swadhinbharatworld.blogspot.com/
फेसबुक लिंक : https://www.facebook.com/abhimanyumonusingh
फेसबुक लिंक : https://www.facebook.com/bhumijotak/
फेसबुक लिंक : https://www.facebook.com/azadbharatworld/
फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/ybmunch

RTI OF MONU

प्रमुख संज्ञेय अपराधी — संपूर्ण भारत की बैंकिंग प्रणाली पर एक चिंताजनक दृष्य (आधार: बैंकिंग विभाग के कर्मी लोकसेवक नहीं होने पर स्वयं को ल...